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54 मिनट पहले
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एक दिन सभी ऋषि-मुनियों ने विचार किया कि ब्रह्मा-विष्णु और महेश, इन तीनों में श्रेष्ठ देवता कौन हैं?
सोच-विचार करने के बाद ऋषि-मुनियों ने सर्वश्रेष्ठ देवता की परख करने का काम भृगु ऋषि को सौंपा।
भृगु ऋषि सबसे पहले ब्रह्मलोक पहुंचे और ब्रह्मा जी के पास जाकर बैठ गए। ब्रह्मा जी को ये बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा कि कोई एकदम उनके पास आकर बैठ गया है।
भृगु ऋषि पर उन्हें गुस्सा आया, लेकिन वे कुछ बोले नहीं। भृगु ऋषि ब्रह्मा जी के हाव-भाव देखकर समझ गए कि इन्हें मेरा इस तरह बैठना अच्छा नहीं लगा है।
ब्रह्म लोक के बाद भृगु शिव लोक पहुंचे। वहां जैसे ही शिव जी ने भृगु ऋषि को देखा तो वे खुद उठकर उनके पास पहुंचे और उन्हें गले लगाने की कोशिश की, लेकिन ऋषि ने ऐसा करने से मना कर दिया और पीछे हट गए।
भृगु शिव जी से बोले कि आपने चिता की भस्म लगा रखी है, मैं उसे स्पर्श नहीं कर सकता।
ये सुनते ही शिव जी को गुस्सा आ गया, उन्होंने त्रिशूल उठा लिया। उस समय देवी पार्वती ने शिव जी को शांत किया।
भृगु ऋषि समझ गए कि यहां तो ब्रह्मा जी से भी ज्यादा आक्रामक प्रतिक्रिया है। इसके बाद वे विष्णु लोक पहुंचे।
भृगु ऋषि विष्णु लोक पहुंचे तो उस समय वहां विष्णु जी विश्राम कर रहे थे। भृगु ऋषि भगवान के पास पहुंचे और उन्होंने एक पैर विष्णु जी की छाती पर मार दिया।
भृगु ऋषि के इस काम के बाद भी विष्णु जी क्रोधित नहीं हुए। वे तुरंत उठे और ऋषि के पैर पकड़ कर बोले कि मेरी छाती पर अनेक शत्रुओं ने प्रहार किए हैं। सभी के प्रहारों को सह-सहकर मेरी छाती बहुत कठोर हो गई है। आपके पैर तो कोमल हैं, इस वजह से आपको कहीं चोट तो नहीं लगी?
इस घटना के बाद भृगु ऋषि सभी ऋषियों के पास लौट आए और सभी से कहा कि मेरी नजर में सबसे श्रेष्ठ विष्णु जी हैं और इसीलिए पालन का काम वे कर रहे हैं।
इस प्रसंग में विष्णु जी ने संदेश दिया है कि हमें किसी भी स्थिति में धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए।
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