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2 घंटे पहले
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महाभारत का किस्सा है। कौरव-पांडवों के बीज युद्ध हो रहा था। के 9 दिन बीत चुके थे, लेकिन कौरव पांडवों को पराजित नहीं कर पा रहे थे। इस बात से दुर्योधन गुस्सा हो गया और उसने भीष्म पितामह से शिकायत करते हुए कहा कि आप ठीक से युद्ध ही नहीं कर रहे हैं। हमारे पक्ष के कई राजा मारे जा चुके हैं। मेरे कई भाई मारे जा चुके हैं, लेकिन अब तक एक भी पांडव नहीं मरा है।
दुर्योधन ने चिल्लाते हुए भीष्म से आगे कहा कि आप जिस तरह से युद्ध कर रहे हैं, उसे देखकर तो यही लगता है कि आप कौरवों की ओर से नहीं, बल्कि पांडवों की ओर से युद्ध कर रहे हैं।
इससे पहले भी दुर्योधन भीष्म को बार-बार ताने मारते रहता था, लेकिन में शांत रहते थे। युद्ध के 9वें दिन भीष्म का धैर्य टूट गया और दुर्योधन के तानों से दुखी होकर भीष्म ने दुर्योधन से कह दिया कि कल के युद्ध में या तो मैं मरूंगा या मैं पांडवों का वध कर दूंगा। मैंने तेरा अन्न खाया है। उसकी कीमत जरूर चुकाऊंगा।
भीष्म पितामह की ये बातें सुनकर दुर्योधन को भरोसा हो गया था कि भीष्म को तो इच्छामृत्यु का वरदान मिला हुआ है, इसलिए ये तो मरेंगे नहीं, कल पांडव मारे जाएंगे।
अगले दिन जब भीष्म और अर्जुन आमने-सामने आ गए। उस समय अर्जुन के रथ पर शिखंडी आया तो भीष्म ने अपने धनुष-बाण रख दिए थे, क्योंकि भीष्म शिखंडी को स्त्री मानते थे और वे स्त्रियों के सामने शस्त्र नहीं उठाते थे।
भीष्म ने धनुष-बाण रखे तो अर्जुन ने उन्हें पराजित कर दिया। अर्जुन के बाणों से भीष्म बाणों की शय्या पर आ गए।
युद्ध के बाद जब पांडव भीष्म पितामह से मिलने पहुंचे तो वे धर्म का ज्ञान दे रहे थे। भीष्म से ज्ञान की बातें सुनकर द्रौपदी ने कहा कि आज आप धर्म का ज्ञान दे रहे हैं, लेकिन ये ज्ञान उस समय कहां गया था, जब भरी सभा में मेरा चीरहरण हो रहा था?
महाभारत की सीख
भीष्म पितामह ने द्रौपदी की बात का जवाब देते हुए कहा कि दुर्योधन का अन्न खाने से मेरा मन उससे बंध गया था। दुर्योधन का धन अधर्म से कमाया हुआ था और वही अन्न मैं भी खा रहा था। इस वजह से मैं उस दिन चुप रह गया। अधर्म से कमाए हुए धन की वजह से हम बंध जाते हैं, इसलिए ऐसे धन और ऐसे अन्न से बचना चाहिए।
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